बचपन के दिन भी कितने अछे थे,
तब तो सिर्फ खिलोने टूटा करते थे,
वो खुशियाँ भी न जाने कैसी खुशियाँ थीं,
तितली को पकड़ के उछला करते थे,
पाँव मार के खुद बारिश के पानी में,
अपने आप को भिगोया करते थे,
अब तो एक आंसू भी रुसवा कर जाता है,
बचपन में तो दिल खोल के रोया करते थे...
5 comments:
what is this weird language?
Beautiful!
@mist.. Its ur national language..(only if IIT was more careful with the general awareness quo of its students..*sigh*)
@pragya... Yes it is, I ended up listening to jagjit singh's(ye daulat bhi le lo...) ghazal after reading this..
Bon mot. :)
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